बदलाव की बयार है , क्रांति की शुरुवात है, उम्मेदेओ का आगाज है क्या अर्थ निकालें हम अखिलेश जी के मुख्यमंत्री होने का ??? अब उत्तर प्रदेश में बेरोजगार भत्ता पाकर खुशहाल होंगे, किसान कर्ज माफ़ी के हकदार होंगे, बिटिया की शादी के लिए पैसा मिलेगा, किशोरों को लैपटॉप मिलेगा,, वगैरा वगैरा ... कितने पुराने वादे का तड़का राजनीती की खाती गंवई अंदाज में सब कुछ फ्री करते हुवे नए पैक में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव होंगे नए चेहरे के साथ.. अंदाजे बयां तो वही है, सब कुछ पहले की तरह ही लुभावना ,, फिर नेता जी का चेहरा कोई भी हो,,, क्या इस नए चेहरे से हम कुछ नयी उम्मेदेओ कर सकने की गुस्ताखी कर सकते है ?? की हमारे मीलों कारखानों को कब चालू करेंगे,, हमें बिजली पानी की सुवाधि कितनी बढ़ेगी,, कितने नए लोगों को रोजगार मिलेंगे ?? नए मुख्यमंत्री महोदय हमें आपसे कुछ नयेपन की तलाश है..
SUN LO MERI BAAT
SUMAN KEE BATRAS
- SUN LO MERI BAAT
- Deoria, Uttar Pradesh, India
- Asst.Manager(Systems)UPDASP, Deoria Uttar Pradesh India.
सोमवार, 12 मार्च 2012
शनिवार, 10 मार्च 2012
कभी सोचती हूँ की क्या हमारे देश को आजादी हमी लोगों ने दिलवाई,, या फिर उसके लिए किसी देवता ने अवतार लिया था ,,, क्योकि हमारे खून में सच के लिए लड़ने का वो जज्बा कहा से आ गया वो विरोध करने के लिए रगों में गर्मी कहा से आ गयी?? निश्चित तौर पैर हम या तो उन पुरखों की संतान नहीं या फिर वो पुरखे हमारे नहीं थे. कैसे यकीन करेगी हमारी आने वाली पीढ़ी आजादी की लड्याई के किस्सों जज्बातों पर. अब तो हमें निर्दोष लोगों के मरे जाने का कोई गम नहीं होता. ख़ुशी इस बात की होती है की हम बच गए.. . किसी मासूम लड़की की इज्जत तार तार किये जाने पर शर्मिंदगी नहीं होती बल्कि उसके फ़शिओनब्ले कपडे की कैफियत देते हैं. लड़ते रहे अन्ना हजारे हमअरे अधिकारों के लिए वक़्त आने पर हम तो अपनी जाती वाले को ही वोट करेंगे.. अरे भाड़ में जाये सोसाइटी और देश मुझे अपने इन्क्रीमेंट और फॅमिली से मतलब है,, क्यों बेकार में देश के बारे में समाज के बारे में सोंचे इतना दिमाग खर्च करके तो अपन एक नया सॉफ्टवेर अप्प्लिकतिओन तयार कर लेंगे ,,, जलता रहे समाज और डूबता रहे देश मुझे क्या मेरा तो इस साल का पैकज १२ लाख का फिय्नल है बस कोक में चूहे मारने की दवा हिसाब से मिलकर इस बार सुन्नी लियों से बिकवाना है राजी तो वो पहले से ही है... हा बस एक बात और फिय्नल करनी है की वो हमरे बिज़नस को बढ़ाये हमारा कोक पीने के बाद तो उसकी सीडी खुद ही दौबले रेट पे बिकेगी..
यकीन करे या न करे लेकिन हम भारतीय तो अब नहीं रहे और क्या है मालूम नहीं क्या बन जांएगे कुछ अंदाजा नहीं.... मुझ पर यकीन न हो तो ये सवाल खुद से पूछ के देख लो दोस्त !!!!!!!!!
यकीन करे या न करे लेकिन हम भारतीय तो अब नहीं रहे और क्या है मालूम नहीं क्या बन जांएगे कुछ अंदाजा नहीं.... मुझ पर यकीन न हो तो ये सवाल खुद से पूछ के देख लो दोस्त !!!!!!!!!
सोमवार, 19 अक्तूबर 2009
जीत गयी जिंदगी
जीत गयी जिंदगी
मौत और जिंदगी की जंग में एक बार फिर जिंदगी की जीत हुई। भगवान का चमत्कार कहिए, लाखों लोगों की दुआओं का असर कहिए या फिर डाक्टरों की हिम्मत भरी कोशिश का नतीजा, ईश्र्वर ने बस चालक अजय यादव की जान बख्श दी। 21 वीं सदी में मेडिकल साइंस ने चाहे जितनी तरक्की कर ली हो मगर डाक्टरों के लिए यह आपरेशन मुश्किलों भरा काम था। भगवान को साक्षी मान कर डाक्टरों ने आपरेशन किया और शत-प्रतिशत सफल रहे। तीन घंटे तक चले टेंशन से भरे आपरेशन के बाद डाक्टरों ने अजय के पेट में घुसी लोहे की पाइप बाहर निकाल ली।
रविवार, 18 अक्तूबर 2009
शनिवार, 19 सितंबर 2009
मिली है पाती ..
जब संदेशे नही चिठ्ठी आती थी ....
कल आई एक चिठ्ठी मेरे नाम॥ हाथ में लेते हुए रोमांच से भर गयी ॥ आँखों को यकीन नही, पर सच था ।चिठ्ठी थी सरकारी पर खुशी ईतनी के लगा जैसे प्रेमपत्र हो क्योकि अब तो सरकार भी ई० हो गयी है॥ क्या आपने कभी अंतरदेसी ,लिफाफा या फ़िर पोस्टकार्ड लिखा है ?? कितना कुछ लिखते थे हम।घर के लोगो के sअथ पडोसियों का हाल भी। घर की गाय से लेकर रिश्तेदारों का भी हाल bhejate थे हम। अब किसे वक्त है और किसे इतनी फुर्सत की बैठ के लिखे कुछ लाइन पाती पे । अब तो मिल जायेगे फ्री mesage हर मूड के फ़िर क्यो दे अपने हाथो को इतनी तकलीफ और दिमाग पे डाले जोर .हम जी रहे है आई० tee युग में। लेकिन एक संदेह है मन में के क्या वही sउकून मिलता है ईमेल करने के बाद क्या हम लिख पाते है सबकुछ मोबाइल के mएसजे में॥ जवाब मिले तो लिखियेगा जरूर॥
कल आई एक चिठ्ठी मेरे नाम॥ हाथ में लेते हुए रोमांच से भर गयी ॥ आँखों को यकीन नही, पर सच था ।चिठ्ठी थी सरकारी पर खुशी ईतनी के लगा जैसे प्रेमपत्र हो क्योकि अब तो सरकार भी ई० हो गयी है॥ क्या आपने कभी अंतरदेसी ,लिफाफा या फ़िर पोस्टकार्ड लिखा है ?? कितना कुछ लिखते थे हम।घर के लोगो के sअथ पडोसियों का हाल भी। घर की गाय से लेकर रिश्तेदारों का भी हाल bhejate थे हम। अब किसे वक्त है और किसे इतनी फुर्सत की बैठ के लिखे कुछ लाइन पाती पे । अब तो मिल जायेगे फ्री mesage हर मूड के फ़िर क्यो दे अपने हाथो को इतनी तकलीफ और दिमाग पे डाले जोर .हम जी रहे है आई० tee युग में। लेकिन एक संदेह है मन में के क्या वही sउकून मिलता है ईमेल करने के बाद क्या हम लिख पाते है सबकुछ मोबाइल के mएसजे में॥ जवाब मिले तो लिखियेगा जरूर॥
शुक्रवार, 18 सितंबर 2009
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